हनुमान जी, सूर्य को निगलते हुए

कुछ दिनों से सोशल मीडिया में सूर्य की तस्वीर वायरल की जा रही है और पूछा जा रहा है कि सूर्य का तो आकार फलाँ-फलाँ है तो हनुमान जी ने इसे कैसे निगल लिया? ऐसे प्रपंचियों को समझाना इस लेख का लक्ष्य नहीं, लेकिन कम से कम हिन्दुओं को तो चीजें पता होनी चाहिए। ख़ास बात ये है कि ये फ़ैलाने वाले कोई इस्लामी कट्टरपंथी नहीं हैं, बल्कि कई हिन्दू नाम वाले हैंडल भी हैं। इनका दलित हितों से कोई लेना-देना नहीं, लेकिन ये स्वयं को दलितों का ठेकेदार बताते हैं।

दिमागी स्तर मापने के जो भी मापदंड हों, इनका स्तर शून्य से भी नीचे जाता है। अब समय आ गया है जब हनुमान जी वाली कथा को क्रमवार देखें और समझें कि ऐसा क्या है जो सनातन धर्म पर हमला करने वालों को समझ नहीं आ रहा है। कथा संक्षेप में यूँ है कि हनुमान जी भूखे थे तो उन्होंने उगते हुए सूर्य को फल समझकर उसे निगल लिया। वो धरती से कूदकर सीधे सूर्य के पास गए। इससे दुनिया में अँधेरा हो गया और इंद्र ने उनपर वज्रप्रहार किया। बाद में वायुदेव के रुष्ट होने के बाद सब देवताओं ने उन्हें वरदान दिया।

हनुमान जी सूर्य को देखकर उसे निगलने के लिए उद्यत होते हैं

सनातन धर्म में सूर्य केवल ऊपर जो दिखता है वही सूर्य नहीं है। वेदों में सूर्य ब्रह्माण्ड का नेत्र है, जो ब्रह्म के चक्षु हैं उन्हें भी सूर्य ही कहा गया है। हनुमान जी उस समय बालक थे, लेकिन ज्ञानप्राप्ति को लेकर वो इतने व्यग्र थे कि एक ही झटके में सारा ज्ञान पा लेना चाहते थे। कथा कुछ यूँ है कि हनुमान जी ने उदित होते सूर्य को देखा और उसे निगलने के लिए उद्यत हो उठे। अर्थात, उन्हें आत्मज्योति की हल्की झलक दिखाई दी और वो तुरंत ही उसे पूरा पाने के लिए निकल पड़े।

वेदांत में ब्रह्म को ‘चक्षुः सूर्य इवोदितः’ कहकर संबोधित किया गया है, अर्थात वो ब्रह्म को ज्ञान का स्रोत बताकर कहा गया है कि वो कुछ उस तरह उदित होते हैं जैसे सूर्य। सूर्योदय का दृश्य काफ़ी सुंदर होता है, लेकिन उस सुंदरता और मद्धिम किरणों के पीछे सूर्य भयंकर ज्वाला का स्रोत है। ठीक वैसे ही, ज्ञान का प्रकाश बहुत अच्छा लगता है लेकिन उसे पाने निकलने पर पता चलता है कि ये अथाह है। कोई सीधे ब्रह्मज्ञानी नहीं बन सकता, उसके लिए प्रक्रिया से गुजरनी होती है।

वायु हनुमान जी की रक्षा करते हैं

वायु का तात्पर्य यहाँ अदृश्य जीवनरक्षक से है, जो ज्ञानप्राप्ति के लिए यात्रा करने वालों की सुरक्षा करता है। इसके पीछे ये सन्देश है कि अगर आप ज्ञानप्राप्ति के लिए बड़ी से बड़ी कूद भी लगाएँगे, तो इस ब्रह्माण्ड की प्राणवायु आपका साथ देगी। आपकी साँसें सार्थक लक्ष्य के लिए उपयोग में लाई जा रही हैं, इसीलिए वो आपका साथ नहीं छोड़ेंगी। योगी श्री M कहते हैं कि ये श्वास ही है जो आपकी आत्मा और आपके शरीर के बीच की सेतु है, अगर इसपर आपका नियंत्रण है तो आपके मस्तिष्क पर भी आपका नियंत्रण है।

अतः, हनुमान जहाँ भी जाते हैं वायुदेव उनका साथ देते हैं, उनकी रक्षा करते हैं। हनुमान वायुपुत्र भी हैं। यही कारण है कि वो लंका से उड़कर हिमालय पर पहुँच जाते हैं और वहाँ से पूरे पर्वत को उठाकर वापस लौटते हैं। लंका में आग लगाकर भी वो जलते नहीं, ‘मरुत उनचास’ पूरी लंका जला देते हैं लेकिन हनुमान जी नहीं जलते। ये वायु संपूर्ण ब्रह्माण्ड में है, पृथ्वी के वातावरण में ये हवा के रूप में है। हनुमान को पवन-पुत्र कहा गया है।

हनुमान सूर्य के प्रकाश से जलते नहीं

इसका अर्थ है कि सच्चा ज्ञान कभी भी आपको हानि नहीं पहुँचाता है, ये आपको शुद्ध करता है। हनुमान एक निर्दोष बालक हैं, भले ही वो ज्ञान रूपी प्रकाश के परम स्रोत के पास पहुँच जाते हैं लेकिन वो जलते नहीं। भगवद्गीता (4.38) में भी श्रीकृष्ण कहते हैं – ‘न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते‘, दूसरी कोई भी ऐसी चीज नहीं है जो ज्ञान की तरह आपको निर्मल कर सके। हनुमान जी द्वारा सूर्य के समीप जाकर भी न जलने के पीछे का अर्थ यही है कि आप तैयार नहीं हैं फिर भी सत्य या परमज्ञान आपको कोई नुक़सान नहीं पहुँचाएगा।

राहु सूर्य को निगलने के लिए लपकता है

कथा कुछ यूँ है कि उसी समय सूर्य को खाने के लिए राहु भी आया था, लेकिन हनुमान के भय से वो भाग जाता है। राहु, यानी – माया, शंका, भय। जब हनुमान यहाँ पवित्रता और साहस के प्रतीक हैं, तो राहु यहाँ माया है। माया से अध्यात्म के माध्यम से ही निपटा जा सकता है। माया को ‘महाठगिनी’ भी कहा गया है, जैसे-जैसे ज्ञान की प्राप्ति होती है वैसे-वैसे माया के बादल छँटते चले जाते हैं। हनुमान जी की तरह ही अपने डर का सामना कीजिए, मस्तिष्क में ‘सत्व’ होगा तब राहु नाम का तमस भागता फिरेगा।

योग वशिष्ठ में श्रीराम को उपदेश देते हुए वशिष्ठ मुनि समस्त संसार को माया बताते हुए कहते हैं कि इसमें जो कुछ भी है सब माया है। राहु उसी माया का प्रतीक है यहाँ। राहु ने ग्रहण लगा दिया, मतलब आपका चित्त आपके वश में नहीं है और ज्ञानप्राप्ति नहीं हो पाएगी। हनुमान जी इससे बच गए।

इंद्र द्वारा हनुमान को ख़तरा समझकर उनपर वज्र प्रहार करना

हनुमान जी को भूख लगी, उन्होंने उदित होते सूर्य का सुंदर रूप देखा, उसे निगलने के लिए उड़ लिए, पास पहुँचकर भी जले नहीं, राहु भाग निकला – अब कथा आगे बढ़ती है। इंद्र ने हनुमान जी को ख़तरा मानकर उनपर वज्र प्रहार किया। ज्ञानप्राप्ति के मार्ग में भी सज़ा? इंद्र यहाँ दैवीय कर्म, व्यवस्था और अनुशासन के प्रतीक हैं। ज्ञान तो आपको नहीं जलाएगा, लेकिन दैवीय शक्तियाँ आपकी परीक्षा अवश्य लेंगी। दुःख ज़रूर आएँगे, लेकिन अगर आप सही रास्ते पर हैं तो ये सज़ा नहीं बल्कि बदलाव की प्रक्रिया का माध्यम बनेंगे।

दुःख कभी-कभी सुधार के लिए ही आते हैं, ये दैवीय सज़ा ही नहीं होते। इसके बाद कथा है कि हनुमान जी को नुक़सान पहुँचता है तो वायुदेव पूरे ब्रह्माण्ड को तड़पता हुआ छोड़कर निकल लेते हैं। इस ब्रह्माण्ड में सबकुछ एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है, भौतिकी के नियम भी यही कहते हैं। कई नियम हमें पता नहीं, लेकिन फिर भी वो अस्तित्व में हैं और अपना कार्य कर रहे हैं। न्यूटन से पहले भी गुरुत्वाकर्षण था। अंत में देवताओं को भी झुकना पड़ता है और हनुमान परमज्ञानी बनकर निकलते हैं।

इसके बाद जो रामायण में होता है, वो हम सबको पता है। मान लीजिए, हमें इतिहास की किसी घटना के बारे में जानना है। जो पुरातत्वविद होंगे, वो सीधे उपलब्ध साक्ष्यों का अध्ययन करेंगे। जो इतिहासकार होंगे, वो समकालीन साहित्य देखेंगे। जो छात्र होंगे, वो उन इतिहासकारों को पढ़ेंगे। जो आम लोग होंगे, वो उस घटना पर आधारित उपन्यास पढ़ेंगे। जो बच्चे होंगे, उन्हें चित्रकथा के रूप में वो घटना पढ़ाई जाएगी। जिसका ज्ञान का जो स्तर, कंटेंट उसके लिए उसी रूप में दिमाइज किया जाता है। सनातन धर्म में भी ऐसा ही है।

जिन्हें शंका है, वो हनुमान जी पर लिखे गए इस लेख को पढ़ सकते हैं। श्रीराम ने हनुमान जी की बातों से ही अंदाज़ा लगा लिया कि वो तीनों प्रमुख वेदों के ज्ञाता हैं। जब पहली बार श्रीराम उनसे मिले, उस प्रसंग में हनुमान जी काफी देर तक बोलते हैं। श्रीराम ने पाया कि इसके बावजूद उनके मुँह से एक भी अशुद्धि नहीं निकली। हनुमान जी की भौहें, ललाट, मुख और नेत्र के अलावा सभी अंग उनकी बातों के हिसाब से उनका साथ देते थे। यानी, सभी अंगों में और उनकी बातों में तालमेल दिखता था।



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