आज से लगभग 14 साल पहले देश में कॉन्ग्रेस की अगुवाई वाली UPA सरकार थी। UPA की यह सरकार ‘अल्पसंख्यकों का संसाधनों पर पहला हक़’ वाली नीति पर चलती थी। मुस्लिम तुष्टिकरण की पिच पर रोज चौके-छक्के लगाने की मंशा रखने वाली कॉन्ग्रेस ने इसी दौरान सांप्रदायिक हिंसा बिल से देश का परिचय करवाया था। यह बिल देश की बहुसंख्यक हिन्दू आबादी को दंगाई घोषित करने का दस्तावेज था। तब यह पास नहीं हो पाया था। लेकिन 14 साल बाद ऐसा ही एक बिल कॉन्ग्रेस ने दूसरी शकल में पेश किया है।
कर्नाटक में रोहित वेमुला बिल के नाम से यह नया शिगूफा छेड़ा है। इस बिल के प्रावधानों को लगातार कुछ वैसा ही बताया जा रहा है, जैसा 14 वर्ष पहले सांप्रदायिक हिंसा बिल के प्रावधानों को बताया गया था। जैसे बिना किसी सुनवाई के तब बहुसंख्यक आबादी को दंगाई बताने का प्रयास हो रहा था, वैसे ही अब नए बिल में एक बाद वर्ग के बच्चों को डिफ़ॉल्ट तौर पर शोषक बताने का प्रयास किया गया है। एक बिल माँ सोनिया गाँधी के दौर में आया था, दूसरा उनके बेटे राहुल गाँधी के कहने पर लाया गया है।
जिस कानून से आज मैं इस कर्नाटक के नए कानून की तुलना कर रहा हूँ, इसका मसौदा राष्ट्रीय सलाहकार समिति (NAC) ने बनाया था। यह NAC असल में और कुछ नहीं बल्कि देश की चुनी सरकार के ऊपर की सरकार थी, जिसकी मुखिया सोनिया गाँधी थीं और सदस्यों में योगेन्द्र यादव और हर्ष मांदर जैसे लोग शामिल थे। अगर ये क़ानून बन गया होता तो बहुसंख्यक हिन्दू पीड़ित होकर भी अपराधी की श्रेणी में आते और कथित अल्पसंख्यक दंगे कर के भी पीड़ित कहे जाते। हिन्दुओं को बिना कुछ किए ही सज़ा मिलती।
इस कानून के पास होने के बाद जिस भी इलाके में दंगा हो, वहाँ बहुसंख्यक आबादी ही दोषी मानी जाती। अब इस देश में बहुसंख्यक हिन्दू हैं, तो सब जगह वही दोषी होते। यहाँ तक कि अगर कोई हिन्दू किसी समुदाय विशेष वाले को अपना मकान बेचने से मना कर दे, फिर भी घृणा जैसे आरोप लग जाते। जघन्य अपराध कर के भी दंगाई बच निकलते तो पत्थरबाजी, गोलीबारी और बमबारी करने वालों के लिए ये क़ानून कितने बड़े ढाल का काम करता।
हिन्दुओं के पीड़ित होने के बाद भी उन्हें दोषी माना जाता। पुलिस आपकी सुनवाई तक नहीं करती। अब ये सब ‘गुण’ ‘कर्नाटक के इस नए कानून में मौजूद हैं। कर्नाटक सरकार के इस नए शिगूफा बिल के अनुसार, सामान्य वर्ग के छात्रों को छोड़कर बाकी सभी के लिए, यानी SC, ST, OBC और अल्पसंख्यक समुदाय को ‘अन्याय से बचाने’ के लिए प्रावधान बनाए गए हैं। इसके प्रावधान कहते हैं कि कोई भी पीड़ित या फिर उसके परिवार का व्यक्ति सीधे पुलिस में शिकायत दर्ज कर सकता है और बिना किसी सबूत के आरोप लगाया जा सकता है।
इसके बाद तुरंत एक्शन का भी नए कानून में प्रावधान है। बिल में किसी भी तरह के भेदभाव को गैर-जमानती और संगीन अपराध माना गया है। यानी आरोप लगते ही किसी भी छात्र को दोषी मान लिया जाएगा। अब आपने जो कर्नाटक के नए कानून में पढ़ा और सांप्रदायिक हिंसा बिल के बारे में पढ़ा था, उसमे समानता नजर आई होगी। एक बिल मुस्लिमों के तुष्टिकरण के लिए हिन्दुओं को बिन सुनवाई दोषी बना रहा था, दूसरा छात्रों को बिन सुनवाई दोषी बनाता है।
यानी माँ सोनिया गाँधी जिस स्कीम को लागू करना चाहती थी उसे ही थोड़ा सा मोडिफाई करके अब बेटे राहुल गाँधी ने कर्नाटक में लागू करने का प्रयास किया है। दरअसल, बात यह है कि पहले कॉन्ग्रेस चाहती थी कि वह मुस्लिमों का तुष्टिकरण करके सत्ता हासिल करती रहे। 2014 के बाद देश की राजनीति ऐसी पलटी कि हिन्दू संगठित हो गए, वोटबैंक की राजनीति करने वालों को सर पकड़ना पड़ा। लगातार कई चुनाव हारने के बाद कॉन्ग्रेस को समझ आया कि उसकी राह का रोड़ा यह हिन्दू एकता है।
फिर चाहे जातिगत जनगणना की बात हो, या फिर आरक्षण को 50% से ऊपर ले जाना और अब ये रोहित वेमुला बिल, यह सभी उसकी इसी नीति का एक टूल हैं। कॉन्ग्रेस की प्लेबुक कभी भी बदलती नहीं है। कभी वह शाह बानो तो कभी सांप्रदायिक हिंसा बिल तो कभी रोहित वेमुला के नाम पर बनाए गए कानून के रूप में सामने आती है।