कर्नाटक में सिद्दारमैया सरकार आगामी मानसून सत्र में ‘रोहित वेमुला विधेयक 2025’ को पेश करने की पूरी तैयारी कर चुकी है। राहुल गाँधी के ‘हुक्म’ के बाद कर्नाटक सरकार ने छात्रों के बीच SC,ST,OBC और अल्पसंख्यक समुदाय को ‘अन्याय से बचाने’ का बीड़ा उठाया है।
रोहित वेमुला विधेयक का उद्देश्य कथित तौर पर उच्च शिक्षण संस्थानों में अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और अल्पसंख्यक समुदायों के छात्रों के साथ होने वाले जातिगत भेदभाव और उत्पीड़न को रोकना है।
इस विधेयक का नाम हैदराबाद विश्वविद्यालय के पीएचडी छात्र रोहित वेमुला के नाम पर रखा गया है। 17 जनवरी 2016 को रोहित ने आत्महत्या कर ली थी। उसकी आत्महत्या के बाद पूरे देश में जातिगत भेदभाव को लेकर काफी आक्रोश सामने देखने को मिला था। हालाँकि बाद में यह बात जरूर साफ हुई कि रोहित वेमुला असल में दलित समुदाय से था ही नहीं।
बिल में क्या हैं प्रावधान
कर्नाटक सरकार ने इस विधेयक को राज्य के सभी सरकारी, निजी और डीम्ड विश्वविद्यालयों में लागू करने की बात कही है। इसके तहत सामान्य कैटेगरी के छात्रों को छोड़कर बाकी सभी के लिए, यानी SC, ST, OBC और अल्पसंख्यक समुदाय को अन्याय से बचाने की बात कह कानून बनाए गए हैं।
बिल में किसी भी तरह के भेदभाव को गैर-जमानती और संगीन अपराध माना गया है। इसमें पहली बार दोषी पाए जाने पर 1 साल की जेल और ₹10,000 जुर्माना और दोबारा अपराध पर 3 साल की जेल और ₹1 लाख जुर्माना का प्रावधान है। साथ ही, दोषी संस्थानों को राज्य सरकार से वित्तीय सहायता नहीं मिलेगी और पीड़ित को सीधे मुआवजा देने की व्यवस्था भी की गई है।
बिल के तहत कोई भी पीड़ित या फिर उसके परिवार का व्यक्ति सीधे पुलिस में शिकायत दर्ज कर सकता है और बिना किसी सबूत के आरोप लगाया जा सकता है। दोषी पाए जाने पर आरोपित को 1 लाख रुपए तक का मुआवजा देना पड़ेगा।
एक तरह से सामान्य श्रेणी के छात्रों को रंजिश में SC/ST/OBC या अल्पसंख्यक समुदाय का कोई भी व्यक्ति बड़े आराम से जेल भिजवा सकता है। जब तक व्यक्ति निर्दोष साबित नहीं हो जाता तब तक वो दोषी ही माना जाएगा।
इससे भी बड़ी विडंबना ये है कि आरोपित के साथ-साथ उस व्यक्ति को भी इस एक्ट के तहत जेल हो सकती है जिसने आरोपित की मदद की हो, उकसाया हो या फिर वो भी जिसने रोकने की कोशिश नहीं की।
सोशल मीडिया पर जानकार इसे एक संस्थागत उत्पीड़न है। उनका कहना है कि इसे ‘सामाजिक न्याय’ की चाशनी में लपेटकर परोसा जा रहा है। कई विश्लेषक ये भी कह रहे हैं कि जब इसी तरह का SC-ST एक्ट इस वर्ग को संरक्षण देने के लिए पहले से ही मौजूद है तो फिर इस तरह का एक्ट थोप कर संस्थानों के माहौल में द्वेष भरने की क्या आवश्यकता है?
People used to ask "What could be more draconian than the SC/ST Act?"
Well, here it is: The Rohith Vemula Bill
Under the guise of "protection" this bill arms anyone from SC, ST, OBC, or Minority communities in every govt or private university with unchecked power
What can it… https://t.co/WwfInET4hz pic.twitter.com/sIM2HObt89— Shashank Dubey (@Shashank_Dubey0) July 14, 2025
जो दलित नहीं, उसके नाम पर बिल
कर्नाटक सरकार ने रोहित वेमुला के नाम पर दलित विधेयक बना दिया गया जबकि रोहित असल में दलित था ही नहीं। अब इस पर लोग सवाल भी उठा रहे हैं। 2017 में आंध्र प्रदेश सरकार ने रोहित का अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र रद्द कर दिया था और कहा था कि वह ओबीसी वर्ग से हैं ऐसे में शेड्यूल कास्ट का प्रमाण पत्र धोखाधड़ी से बनवाया गया।
इसके लिए तेलंगाना पुलिस ने भी 3 मई 2024 को हाई कोर्ट में एक क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की थी। इसमें बताया गया था कि रोहित वेमुला SC श्रेणी से नहीं था और उसने आत्महत्या इसलिए की क्योंकि उसे अपनी जाति की सच्चाई के उजागर होने का डर था। क्लोजर रिपोर्ट में यह बात भी सामने आई थी कि उनकी मृत्यु के लिए कोई भी व्यक्ति या संस्थान जिम्मेदार नहीं था।
रोहित वेमुला के माता-पिता ने भी इस बात को स्पष्ट किया है कि वह SC-ST समुदाय से नहीं बल्कि वेद्देरा जाति से आते हैं। रोहित के पिता ने यह तक भी कहा था कि उनके बेटे की हत्या हुई थी और वामपंथी समूह ने रोहित की मौत का इस्तेमाल मोदी सरकार के खिलाफ माहौल बनाने के लिए किया।
राहुल ने लिखी पाती और बन गया विधेयक
रोहित की मौत के बाद शुरुआत में उसे दलित बताया गया। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने वामपंथी मीडिया और प्रोपेगेंडा पोर्टल्स के साथ मिलकर जातिगत भेदभाव का मुद्दा उठाया और मोदी सरकार पर निचली जातियों को दबाने का आरोप लगाया।
Thank you Shri @RahulGandhi for your compassionate letter and unwavering voice for justice.
I have directed my legal team to begin drafting the Rohith Vemula Act in Karnataka to ensure no student ever faces discrimination or exclusion in the name of caste, class or identity.… https://t.co/XsmtXW7NDF pic.twitter.com/m8rYbfmHxi— Siddaramaiah (@siddaramaiah) April 19, 2025
नेता प्रतिपक्ष राहुल गाँधी ने 16 अप्रैल 2025 को कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को पत्र लिखा और कहा कि कॉलेज और विश्वविद्यालयों में ‘रोहित वेमुला अधिनियम’ लेकर आया जाए ताकि जातिगत भेदभाव समाप्त हो सके।
यह माँग तब आई जब उन्होंने संसद में दलित, आदिवासी और OBC समुदाय के छात्रों और शिक्षकों से मुलाकात की और कहा कि उच्च शिक्षण संस्थानों में जातिगत भेदभाव होता है। इसके बाद सरकार कर्नाटक सरकार ने मानसून सत्र में रोहित वेमुला एक्ट को पेश करने की घोषणा भी की कर दी।
हाल ही में संसद में मेरी मुलाक़ात दलित, आदिवासी और OBC समुदाय के छात्रों और शिक्षकों से हुई थी। बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि उन्हें किस तरह कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में जाति के आधार पर भेदभाव झेलना पड़ता है।
बाबासाहेब अंबेडकर ने दिखाया था कि शिक्षा ही वह साधन है जिससे… pic.twitter.com/gAwJxr0CIG— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) April 18, 2025
बता दें रोहित के सुसाइड नोट में उन्होंने स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (SFI) से नाराज़गी जताई थी। इसके बावजूद वामपंथी समूह आज भी रोहित की याद में कार्यक्रम करते हैं और इसके जरिए गैर-दलित हिंदुओं को निशाना बनाया जाता है।
न्याय की आड़ में कॉन्ग्रेस की अहिन्दा वोटबैंक की रणनीति
सामाीजिक न्याय की आड़ लेकर इस बिल में जिन-जिन वर्गों को शामिल किया गया है वो असल में कॉन्ग्रेस की अहिन्दा वोट बैंक की राजनीति का एक हिस्सा है। कॉन्ग्रेस की रणनीति कर्नाटक में हमेशा से ‘अहिन्दा’ यानी अल्पसंख्यक, OBC और दलित वोटबैंक को मजबूत करने को लेकर सामने दिखी है।
‘अहिन्दा’ शब्द सबसे पहले कॉन्ग्रेस के नेता देवराज उर्स ने दिया था। बाद में सिद्धारमैया ने इससे अपनी सियासी पहचान स्थापित कर ली। इसी रणनीति के तहत 2015 की जनगणना में OBC और मुस्लिम आरक्षण बढ़ाने की सिफारिश की गई थी।
कर्नाटक में मुस्लिम आबादी 18.08% है और वो OBC में सबसे बड़ा समूह है। कॉन्ग्रेस का मानना है कि जितना वह मुस्लिमों और OBC को आरक्षण देगी, उतना ही पार्टी का वोटबैंक मजबूत होता जाएगा।
जातिगत जनगणना ‘सामाजिक न्याय’ या दो-धारी तलवार
कर्नाटक में जातिगत जनगणना का मुद्दा कॉन्ग्रेस के लिए दो-धारी तलवार बन गया है। एक तरफ पार्टी अपने ‘सामाजिक न्याय’ के नैरेटिव को बनाए रखना चाहती है, जिसके तहत वो OBC, मुस्लिम और दलित वोटबैंक को साधने की कोशिश कर रही है।
दूसरी तरफ लिंगायत और वोक्कालिगा जैसे प्रभावशाली समुदायों का विरोध उसे बैकफुट पर ले आया है। डीके शिवकुमार का बयान कि “हम हर समुदाय को साथ लेकर चलेंगे” साफ तौर पर कॉन्ग्रेस की मजबूरी को दिखाता है।
राहुल गाँधी जातिगत जनगणना को राष्ट्रीय स्तर पर अपनी सियासी पहचान का हिस्सा बनाना चाहते थे, लेकिन अब खुद इस जंजाल में फँसते जा रहे हैं। उनकी पार्टी अब तक न तो 2015 की रिपोर्ट को लागू कर पाई, न ही इसे पूरी तरह खारिज कर पा रही है।
एक ओर बीजेपी इसे कॉन्ग्रेस की नाकामी और सियासी ड्रामेबाजी बता रही है तो दूसरी ओर कर्नाटक की जनता के बीच ये सवाल उठ रहा है कि क्या कॉन्ग्रेस सच में सामाजिक न्याय की बात करती है, या ये सिर्फ वोटबैंक की राजनीति है?
दलित न होते हुए भी रोहित वेमुला के नाम पर विधेयक लाकर कॉन्ग्रेस को भले ही कुछ राजनीतिक लाभ मिल जाए, लेकिन इसके कारण समाजिक न्याय से ज्यादा लोगों के बीच ऊँच-नीच या विभाजन होगा और उन छात्रों के लिए भी परेशानी खड़ी होगी जिन्हें इस एक्ट में किसी भी तरह का संरक्षण नहीं मिला है
इसके साथ ही ये बात भी गौर करने वाली है कि कॉन्ग्रेस का लाया ये एक्ट सिर्फ कर्नाटक के साथ साथ हिमाचल प्रदेश और तेलंगाना जैसे कॉन्ग्रेस शासित राज्यों तक भी पहुँच सकता है।